मुझ को अब तुझ से भी मोहब्बत नहीं रही,
ऐ ज़िंदगी तेरी भी मुझे ज़रूरत नहीं रही,
बुझ गये अब उस के इंतेज़ार के वो जलते दिए,
कहीं भी आस-पास उस की आहट नहीं रही।
मुझको तो दर्द-ए-दिल का मज़ा याद आ गया,
तुम क्यों हुए उदास तुम्हें क्या याद आ गया,
कहने को जिंदगी थी बहुत मुख्तसर मगर,
कुछ यूँ बसर हुई कि खुदा याद आ गया।
हम किसी शख्स से तब तक लड़ते है,
जब तक उससे प्यार की उम्मीद होती है,
जिस दिन वो उम्मीद ख़तम हो जाती है,
उस दिन लड़ना भी खत्म हो जाता है।